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Writer's pictureTribhuwan Tiwari

उत्तराखंड के हरताली पर्व का इतिहास

हरताली': तिवारी ब्राह्मणों का यज्ञोपवीत पर्व का इतिहास


आज कुमाऊं उत्तराखंड के तिवारी बंधुओं द्वारा यज्ञोपवीत धारण तथा रक्षासूत्र बंधन का पर्व 'हरताली' मनाया जा रहा है। कुमाऊं में तिवारी, तिवाड़ी, तेवारी,तेवाड़ी, त्रिपाठी, त्रिवेदी आदि उपनामों से प्रचलित सामवेदी ब्राह्मण आज के दिन ‘हस्त’ नक्षत्र में ही ‘हरताली’ तीज पर जनेऊ धारण करते हैं। हरताली के दिन प्रातःकाल यज्ञोपवीत धारण किया जाता है और बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र बांधती हैं तथा उनके सौभाग्यशाली जीवन एवं दीर्घायुष्य की कामना करती हैं।


तिवारी समुदाय के लोग श्रावणी पूर्णिमा को छोड़कर हरतालिका तीज के अवसर पर जनेऊ संस्कार और रक्षाबंधन का त्योहार क्यों मनाते हैं ?


वैदिक काल से चली आ रही परम्परा के अनुसार ऋग्वेदी एवं यजुर्वेदी ब्राह्मण श्रावणी पूर्णिमा को तथा सामवेदी ब्राह्मण भाद्रपद मास के ‘हस्त’ नक्षत्र में हरतालिका तीज के अवसर पर यज्ञोपवीत धारण का धार्मिक अनुष्ठान करते आए हैं जिसे धर्मशास्त्रीय शब्दावली में ‘उपाकर्म’ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है।


कुछ क्षेत्रों में सामवेदी ब्राह्मण जन्माष्टमी को हरेला बोते हैं एवं हरताली के दिन उसे काटते हैं। सभी ज्योतिषाचारयो के अनुसार सामवेदी ब्राह्मणों का उपाकर्म ऋषि तर्पण सामवेद मंत्रों के विधि के अनुसार भाद्रपद शुक्ल तृतीया हस्त नक्षत्र में होने का विधान है। इस दिन हस्त नक्षत्र होना आवश्यक है और मल मास आदि का कोई विचार नहीं किया जाता। इसलिए भाद्रपद शुक्ल तृतीया हस्त नक्षत्र से युक्त तिथि को ही ‘सामगानामुपाकर्म’ हरताली होना शास्त्र सम्मत माना गया। श्रृंगी ऋषि के वचनानुसार सामवेदियों का उपाकर्म सिंह के सूर्य में भाद्रपद मास में ही होना चाहिए।


1974 में राजा आनंद सिंह की अध्यक्षता में अल्मोड़ा के सामवेदी ब्राह्मणों ने भी इस निर्णय को स्वीकार किया था। और तब से हरताली का त्यौहार तिवारी ब्राह्मणों द्वारा मनाया जाता है। आज के दिन वे पुराना यज्ञोपवीत उतारकर नया धारण करते हैं और पुराने यज्ञोपवीत का पूजन भी करते हैं । इस संस्कार के द्वारा व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही यज्ञोपवीत संस्कार से दूसरे जन्म के कारण ‘द्विज’ कहलाता है-

"जन्मना जायते शूद्र:

संस्कारात् द्विज उच्यते"

अर्थात जन्म से सभी शूद्र उत्पन्न होते हैं संस्कारों से ही मनुष्य 'द्विज' कहलाता है।


प्राचीन काल से हमारी वैदिक परम्परा रही है की ब्राह्मण वर्ग के लिए श्रावणी महापर्व का सबसे अधिक महत्त्व है। रक्षाबंधन त्यौहार का पर्व भाई-बहन के पर्व के रूप में कई हजार सालों से प्रचलन में है परंतु वैदिक काल में इस पर्व का विशेष महत्त्व वेदाध्ययन की दृष्टि से रहा था। रक्षाबंधन जो श्रावणी पूर्णिमा के दिन आता है इसी दिन उपाकर्म का भी अनुष्ठान किया जाता है।

प्राचीन काल में जब गुरुकुल मैं बच्चे अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेते थे तो वो लोग आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बांधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह उसका अपने भावी जीवन में समुचित रूप में प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी समर्थ हो सके। गुरु अपने शिष्य को तथा ब्राह्मण अपने यजमान को रक्षासूत्र बांधते हुए इस मंत्र का उच्चारण करते हुए कहता था -

“येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”.

अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानव नरेश राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।


एक और कथा का बखान शास्त्रों मैं मिलता है की हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी की जाती है | शिव पुराण की एक कथानुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।‘हर’ भगवान शिव का ही एक नाम है और शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत का नाम हरतालिका तीज रखा गया। नारी के सौभाग्य की रक्षा करनेवाले इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य और सुख की लालसा हेतु श्रद्धा, लगन और विश्वास के साथ मनाती हैं। कुवांरी लड़कियां भी अपने मन के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए इस पवित्र पावन व्रत को श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक करती है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्यौहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है।


आज मुझे नॉर्वे मैं हरताली मानाने का अति हर्ष है

'हरताली' पर्व के अवसर पर सभी मित्रों को हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएं।.


त्रिभुवन तिवारी

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